आजकल कविता हम लिखते नहीं,
डायरी के पन्नों को अब पलटते नहीं,
शायद, अब तुम कम याद आते हो।
फोन की रिंग पर अब चौंकते नहीं,
व्हाट्सप्प कई दिनों अब देखते नहीं,
शायद, अब तुम कम याद आते हो।
सांझ ढले अब गज़लें सुनते नहीं,
रातों को करवटें अब बदलते नहीं,
शायद, अब तुम कम याद आते हो।
डायरी के पन्नों को अब पलटते नहीं,
शायद, अब तुम कम याद आते हो।
फोन की रिंग पर अब चौंकते नहीं,
व्हाट्सप्प कई दिनों अब देखते नहीं,
शायद, अब तुम कम याद आते हो।
सांझ ढले अब गज़लें सुनते नहीं,
रातों को करवटें अब बदलते नहीं,
शायद, अब तुम कम याद आते हो।
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