Wednesday, October 27, 2021

"खुशियां"

क्या ढूंढने आए हो तुम।
चकाचौंध रोशनी से भरे,
इस नकली बाज़ार में।
शायद "खुशियां" !
घर, कार, बाइक, मोबाइल !
बहुत सस्ती होती हैं, यह "खुशियां"।
आजकल किश्तों पर,
मिल जाती हैं बाज़ार में।
मगर बहुत कीमती होते हैं "आंसू",
उनको खरीदना, 
हर किसी के बस की बात नहीं।
किसी का दर्द बांट सको अगर,
किसी की खुशियों की वजह,
अगर तुम बन सको "शलभ",
तो ही तुम सच्चे खरीदार हो।
सच्चे अर्थों में इंसान हो।

No comments:

Post a Comment