दोस्ती का नया रिवाज़ देखा ।
दुश्मनों के हाथ में गुलाब देखा।
भरी महफ़िल में उसने हाथ मिलाया मगर,
दिल में उसके बहुत फासला देखा।
ख़ुद ही झुक गयीं नज़रें उसकी ,
आईने में जब उसने अपना चेहरा देखा।
अब ना करेगें भरोसा किसी पर,
कई बार ख़ुद को , ख़ुद से यह कहते देखा।
घाव भरते भी , तो भरते किस तरह ...
दिल पर हर बार, एक जख्म नया देखा।
बहुत बढिया रचना है "राज" जी। बधाई।
ReplyDeleteआपका ह्रदय से आभार प्रिय परमजीत जी.......
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