Wednesday, August 9, 2017

"तुम मित्र मेरे..."

जब वक्त के दो राहे पर,
ठहर जाते हैं कदम मेरे,
आकर रास्ता दिखा जाते हो ।
ना जाने कहाँ से आ जाते हो ,
तुम मित्र मेरे !
हालातों के बिखरते हुए पलों में,
जब आंसुओं से भीगने लगते हैं नैन मेरे,
आकर मेरे लिए "कान्धा" बन जाते हो ।
ना जाने कहाँ से आ जाते हो ,
तुम मित्र मेरे !
जब कभी कुछ कहते - कहते
लड़खडाने लगते हैं होंठ मेरे,
आकर "नए शब्द" दे जाते हो।
ना जाने कहाँ से आ जाते हो ,
तुम मित्र मेरे !
उदासी से भरी ज़िन्दगी में,
कोई नहीं देता जब साथ मेरा,
मेरे संग होने का "आभास" दिला जाते हो।
ना जाने कहाँ से आ जाते हो ,
तुम मित्र मेरे !
एक ही मुलाकात ,
अब धरोहर है उम्र भर की ।
यूँ तो किस्मत ने दोबारा फिर मिलाया नहीं ,
दूर से ही मगर,
अपनेपन का अहसास दे जाते हो।
ना जाने कहाँ से आ जाते हो ,
तुम मित्र मेरे !

© ® शलभ गुप्ता 

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