बिना मिले, बिना देखे हुए,
कभी कभी, कुछ लोग,
ना जाने कब,
धीरे धीरे हमारी,
ज़िन्दगी बन जाते हैं।
हम जान भी नहीं पाते हैं।
चाहे उनसे बात हो,
या न हो फिर भी,
जीने का सबब,
बन जाते हैं।
मिले नहीं कभी मगर,
फिर भी अक्सर याद आते हैं।
कभी कभी, कुछ लोग,
ज़िन्दगी बन जाते हैं।
(शेष फिर... अगली कविता में.)
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