अपने शहर और घर आकर जो मैंने महसूस किया है, वह अहसास दो-दो पंक्तियों के माध्यम से लिखने की कोशिश करता हूँ।
[1] परदेस की चांदनी में, अब तो तपन सी लगती है।
अपने शहर की तेज़ धूप में भी, ठंडक सी लगती है।
[२] बोझिल पलकें कह रहीं हैं , उनकी कहानी सारी।
आखों ही आखों में गुजारी हैं, रातों की नीदें सारी।
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