Sunday, June 21, 2009

"हम , अपनी किताब लिखने से रह गये"



आपके शब्द मुझको, भाव-विभोर कर गये।
पुरानी यादों को , फिर से ताज़ा कर गये।
मेरे दिल ने भी चाहा था कई बार,
अपनी कविताओं को एक नाम दूँ मैं।
उदास शब्दों को , एक मुस्कराहट दूँ मैं।
दिल भी धड़का था, अहसास बन कर कई बार।
अहसास भरे शब्दों को, बहुत प्यार से
पन्नों पर लिखा था मैंने हर बार।
वक्त की आंधियां चली , कुछ इस तरह
"शब्द" सारे , ना जाने कहाँ खो गये।
मेरे हाथों में बस कोरे पन्ने ही रह गये।
हम , अपनी किताब लिखने से रह गये।
बातें करते थे इतिहास लिखने की ,
हम, इस दुनिया में "गुमनाम" होकर रह गये।

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