Thursday, July 6, 2017

"मैं ग्रीष्म हूँ - 2"

(श्रीकांत पुराणिक द्वारा निर्देशित नाटक
"ग्रीष्म" के लिये मेरी एक कविता )
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मैं ग्रीष्म हूँ ,
दिल की दूरियाँ मिटाने आया हूँ।
इस अजनबी शहर को,
अपना बनाने आया हूँ।
हालातों की तेज तपन में,
बारिशों की खुशबू लाया हूँ।
प्रेम के गीत सुनाने आया हूँ।
रंगमंच है ये ज़िन्दगी,
नाटक नये दिखाने आया हूँ।
@ शलभ गुप्ता "राज"
पृथा थिएटर , मुंबई
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