Monday, July 3, 2017

"बारिश.."

थोड़ी देर के लिए ही सही,
बारिश बन कर आ जाओ,
मेरे आँगन में।
बरस जाओ,
दिल के हर कोनों में।
महक जाओ,
घर के सारे बंद कमरों में।
@ शलभ गुप्ता "राज"
पृथा थिएटर , मुंबई 
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(श्रीकांत पुराणिक द्वारा निर्देशित नाटक 
"सावन"  के लिये लिखी हुई कुछ पंक्तियाँ )
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