प्रेम की डगर पर,
भीड़ भरे चौराहों पर,
हमनें देखा है अक्सर,
लोगों को रास्ता बदलते हुए।
आजकल महफिलों में,
हमनें देखा है अक्सर,
प्लास्टिक की मुस्कान लिए,
दोस्तों को बातें करते हुए।
बड़े-बड़े शहरों की,
ऊँची-ऊँची इमारतों में,
हमनें देखा है अक्सर,
बुज़ुर्गों को गुमसुम रहते हुए।
@ शलभ गुप्ता "राज"
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