[१]
हरे भरे पत्तों में,
अपनापन कहाँ।
रास्ते की ख़ामोशी,
तो सूखे पत्ते ही तोड़ सके।
[२]
कुछ सोचकर हम चुप रहे,
शायद, तुम कुछ ज़रूर कहोगे।
बिछुड़ते वक्त आखरी बार,
शायद, तुम मुड़कर देखोगे।
सहेजकर रखी हैं जो मेरी यादें,
शायद, तुम उन्हें वापस करोगे।
[३]
कदम मजबूती से रखो,
रास्ते खुद ही बनते जाते हैं।
ऊंचे नीचे रास्तों पर चलना,
राह के पत्थर ही सिखाते हैं।
हरे भरे पत्तों में,
अपनापन कहाँ।
रास्ते की ख़ामोशी,
तो सूखे पत्ते ही तोड़ सके।
[२]
कुछ सोचकर हम चुप रहे,
शायद, तुम कुछ ज़रूर कहोगे।
बिछुड़ते वक्त आखरी बार,
शायद, तुम मुड़कर देखोगे।
सहेजकर रखी हैं जो मेरी यादें,
शायद, तुम उन्हें वापस करोगे।
[३]
कदम मजबूती से रखो,
रास्ते खुद ही बनते जाते हैं।
ऊंचे नीचे रास्तों पर चलना,
राह के पत्थर ही सिखाते हैं।
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