Tuesday, October 1, 2019

कुछ और पंक्तियाँ

[१]
हरे भरे पत्तों में,
अपनापन कहाँ। 
रास्ते की ख़ामोशी,
तो सूखे पत्ते ही तोड़ सके। 
[२]
कुछ सोचकर हम चुप रहे,
शायद, तुम कुछ ज़रूर कहोगे।
बिछुड़ते वक्त आखरी बार,
शायद, तुम मुड़कर देखोगे।
सहेजकर रखी हैं जो मेरी यादें,
शायद, तुम उन्हें वापस करोगे।
[३]
कदम मजबूती से रखो,
रास्ते खुद ही बनते जाते हैं। 
ऊंचे  नीचे रास्तों पर चलना,
राह के पत्थर ही  सिखाते हैं। 

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