सिर्फ विस्तार ही नहीं,
गहराई भी चाहिये ।
कहना ही पर्याप्त नहीं,
बातों में असर भी चाहिये।
चारों ओर दीवार बनाकर ,
बैठने से कुछ नहीं हासिल
सीमाओं से पार आकर,
नदिया जैसा उन्मुक्त बहना चाहिये।
अनन्त प्रेम पाने के लिए,
खुद को भी असीम बनना चाहिये।
हटा दो सब दीवारें,
तोड़ दो मन के बंधन सारे ...
खुले मन से सबसे मिलना चाहिये।
कल्पनाओं को सार्थक रूप देना है अगर,
निरर्थक सोच से बाहर आना चाहिये।
"राज", जीवन में सबको अपना बनाना है अगर...
"पोखर" नहीं , "महासागर" बनना चाहिये।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
ReplyDeleteaapka hraday se aabhar....
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