Friday, September 3, 2010

"हालातों से जूझ रहा हूँ , थोडी जान अभी बाकी है।"

हालातों से जूझ रहा हूँ , थोडी जान अभी बाकी है ।
"वह" शायद बुला लेंगें मुझको , थोडी आस अभी बाकी है ।
सुबह का सूरज कब निकलेगा ,
बीत रही है रात , मगर थोडी अभी बाकी है ।
रात भर बहुत रोई है रात , आपको याद करके .......
दोपहर तक फूलों पर , ओस अभी बाकी है ।
हालातों से जूझ रहा हूँ , थोडी जान अभी बाकी है ।
"वह" शायद बुला लेंगें मुझको , थोडी आस अभी बाकी है ।

अभी बहुत कुछ आपसे , मुझे सीखना बाकी है ।
अभी बहुत सारी दिल की बातें करना बाकी है ।
हालातों से जूझ रहा हूँ , थोडी जान अभी बाकी है ।
"वह" शायद बुला लेंगें मुझको , थोडी आस अभी बाकी है ।
अभी तो आगाज़ हुआ है सफ़र का , ठहरना कैसा ...
मिलना होगा तो मिल कर रहेगें एक दिन,

मीलों का सफ़र अभी बाकी है ।
लिखता रहूँगा निरंतर, यह "राज" का सबसे वादा है ।
मेरी लेखनी में, उम्मीदों की "रोशनाई अभी बाकी है।

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