प्रिय विवेक जी,
सादर नमस्कार!
गुमसुम से रहने वाले , मेरे शब्दों को आपने मुस्कराना सिखाया है। मेरी कविताओं को आपने, अपने दिल में स्थान दिया है।
मेरे द्वारा प्रेषित की गयी, हर कविता और विचारों को आपने, अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया है। यही मेरे जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है।
चलने में असमर्थ मेरे "शब्द" ; आपकी संजीवन प्रतिक्रियाओं की उंगली पकड़कर , हौले-हौले अब चलने लगे हैं। दिल की बातें कहने लगे हैं....
"मनभावन कविताओं से सज गया है ब्लॉग आपका ।
आपकी "प्रतिक्रियाओं" से "श्रंगार " हुआ कविताओं का ।
शब्दों को नया जीवन मिला, पाकर साथ आपका।
ह्रदय से व्यक्त करते हैं हम आभार आपका ।
अभी तो सृजन हुआ है मन में नवीन भावों का ,
निखर जायेगें , संवर जायेगें , बिगड़े हैं तो सुधर जायेगें ।
कुछ ऐसा लिख जायेगें, एक धरोहर बन जायेगें ।
उम्र भर अगर मिल जाये , "शब्दों" को साथ आपका।
ह्रदय से व्यक्त करते हैं हम आभार आपका ।
लाखों ब्लॉग हैं इन्टरनेट पर, आप को ही साथी बनाया ।
अजनबी रिश्तों के बीच, पहचान है अपनेपन की .....
अनुपम संग्रह है , जीवन के सच्चे अनुभवों का ।
अनगिनत कैक्टसों के मध्य, खिलते "गुलाब" सा ब्लॉग आपका।
ह्रदय से व्यक्त करते हैं हम आभार आपका ।
कुछ ना कुछ रिश्ता ज़रूर है "हमारा" और "आपका" ।
संग-संग ले चलिये , या बीच राह छोड़ दीजिये ।
हमें स्वीकार है , हर निर्णय आपका ।
प्रभु से करते हैं ,प्रार्थना हम बार-बार ।
अटूट रहे रिश्ता "हमारा" और "आपका" ।
आपका ही,
शलभ गुप्ता
आमीन ... ये रिश्ता कायम रहे ...
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