Wednesday, September 15, 2010

"ख़ुशी का "एक आंसू" बन जाऊं ..."

प्रिय विवेक जी,
सादर नमस्कार...!
"किसी की पथराई आँखों के लिए ,
ख़ुशी का "एक आंसू" बन जाऊं।
चाहे अगले ही पल बह जाऊं।
एक पल में कई ज़िन्दगी जी जाऊं,
चाहे अगले ही पल फ़ना हो जाऊं। "
यूँ ही गुज़र रही है ज़िन्दगी,
किसी काम आ जाऊं मैं ।
एक तारा हूँ टूटा हुआ,
किसी की मुराद बन जाऊं मैं।
हालातों की तेज़ तपन में ,
किसी पथिक के लिए ,
शीतल पवन बन जाऊं मैं।
जो समझे मुझे सच्चा दोस्त अपना,
उसके लिए हद से भी गुज़र जाऊं मैं।
यूँ ही गुज़र रही है ज़िन्दगी,
किसी काम आ जाऊं मैं । "

आप सही कहते हैं...., जीवन जीना वही सार्थक है.... जो जीवन किसी के काम आ जाये ....
आपका ही,
शलभ गुप्ता

2 comments:

  1. उसके लिए हद से भी गुज़र जाऊं मैं।
    यूँ ही गुज़र रही है ज़िन्दगी,
    किसी काम आ जाऊं मैं । "
    आप सही कहते हैं...., जीवन जीना वही सार्थक है.... जो जीवन किसी के काम आ जाये ....
    .बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ..

    ReplyDelete