Wednesday, October 6, 2010

"मेरी कविताओं को नए अर्थ दे गया कोई ....

मेरी कविताओं को नए अर्थ दे गया कोई,
अजनबी शहर में अपना बना गया कोई।
मन के आँगन में गूंज रहे साज़ नए संगीत के,
दिल की दहलीज़ पर आकर दस्तक दे गया कोई।
धीरे- धीरे से चलकर, दबे पाँव करीब आकर
छ्म से पायल बजा गया कोई।
ख़ुद को भी हम लगने लगे अच्छे अब तो,
बार-बार आईने में चेहरा देख रहा कोई।
अजनबी शहर में अपना बना गया कोई।
ज़िन्दगी की तेज तपन में,
बादल बनकर बरस गया कोई।
खोये- खोये से लम्हों को यादगार बना गया कोई।
कुछ अलग है बात उस शक्स में ,
पहली ही मुलाकात में मुझसे ,
इतना घुल-मिल गया कोई।
अजनबी शहर में अपना बना गया कोई।

6 comments:

  1. vaah vaah ............bahut sundar abhivyakti.

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  2. @ Vandna ji : aapka hraday se abhaar ......

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  3. bahut sunder utsaah ke bhav liye nav sanchar liye hai aapkee ye rachana.

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  4. कुछ अलग है बात उस शक्स में ,
    पहली ही मुलाकात में मुझसे ,
    इतना घुल-मिल गया कोई।
    अजनबी शहर में अपना बना गया कोई ...

    कही कोई होता है ऐसा जो जिंदगी में ऐसे ही आता है और अपना बना लेता है ....

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  5. @Apanatva : आपके शब्द मेरा हौसला बढ़ा जातें हैं.... आपका बहुत -बहुत आभार....

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  6. @ दिगम्बर नासवा जी : सच कहा आपने.... कही कोई होता है ऐसा जो जिंदगी में ऐसे ही आता है और अपना बना लेता है ....

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