Saturday, October 23, 2010

"चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।"



चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
सांझ ढले से ही मुझको , बस उसका इंतज़ार था।
उससे मिलने की तमन्ना में, दिल बेकरार था।
आंसमा में चमक रहा, मानों आफताब था।
चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
छत पर बैठ कर , बतियाँ की ढेर सारी।
आखों ही आखों में गुज़र गयी रात सारी
मेरे चाँद का , जुदा सबसे अंदाज़ था।
चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
चंद लम्हों में ही, कई जन्मों का साथ था।
चांदनी में उसकी , अपनेपन का अहसास था।
बिछुड़ने के वक्त, आखों में बस मेरी ....
आंसुओं का ही "राज" था।
चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था

फोटो - आभार गूगल

5 comments:

  1. तभी तो इतनी खास कविता बन पाई।सुन्दर रचना के लिये बधाई।

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  2. @ Nirmala ji : aapka Hradey se bhaut-bhaut aabhar....

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  3. मेरा भी यही कहना है -

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    चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
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  4. @ Ravi Ji: Sach kaha aapne.... bhaut khaas tha...vah chaand.... bhaut yaad ayega ab chand...

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