Thursday, February 5, 2009

वर्ष गुज़र रहे निरंतर ..........

वर्ष गुज़र रहे निरंतर , धीरे- धीरे कम हो रहा अन्तर
टेडी - मेडी जीवन किया रेखाएं , कब होंगी सामानांतर।
भविष्य से जुडा हुआ वर्तमान है,
दिन के उजाले में भी कितना अन्धकार है ।
कई यक्ष प्रश्नों के, मै आज भी ढूंढ रहा उत्तर।
वर्ष गुज़र रहे निरंतर , धीरे- धीरे कम हो रहा अन्तर,
ना जाने कब कैसे , कहानी बन गई ज़िन्दगी की,
कुछ ही रीलें शेष है, कब का बीत गया मध्यांतर ।
बनना चाहा अविरल धारा मैंने, पहाडों पर भी रस्ते बनाये मैंने,
"राज" की किस्मत भी कैसी है दोस्तों ,
पहुचें जो मंजिल के करीब, सूख गयीं सब नदियाँ और समुन्दर।
वर्ष गुज़र रहे निरंतर , धीरे- धीरे कम हो रहा अन्तर ।

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