Sunday, February 8, 2009

"इश्मित" की याद में ................


उदय से पहले अस्त हो गया एक तारा,
ना जाने कहाँ खो गया "इश्मित" हमारा ।
लोरियां सुना कर सुलाती थी जिसे,
चिर निद्रा में सो गया, माँ का राज दुलारा।
गगन में उड़ने के लिए, अपने पंख खोले ही थे उसने।
बेदर्द आंधी ने घोंसला गिरा दिया उसका सारा।
यूँ तो सबसे उसका रिश्ता नहीं था मगर,
उसके दुख में डूब गया जहाँ सारा।
सुरमई आवाज़ खामोश हो गई ,
कान्हा की बांसुरी कहीं गुम हो गई।
चला गया है उस जहाँ में वो,
जहाँ से लौट कर आता नही कोई दोबारा।

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