Tuesday, February 10, 2009

मेरी कविताओं को नए अर्थ दे गया कोई,

मेरी कविताओं को नए अर्थ दे गया कोई,
अजनबी शहर में अपना बना गया कोई।
मन के आँगन में गूंज रहे साज़ नए संगीत के,
दिल की दहलीज़ पर आकर दस्तक दे गया कोई।
धीरे- धीरे से चलकर, दबे पाँव करीब आकर
छ्म से पायल बजा गया कोई।
ख़ुद को भी हम लगने लगे अच्छे अब तो,
बार-बार आईने में चेहरा देख रहा कोई।
अजनबी शहर में अपना बना गया कोई।
ज़िन्दगी की तेज तपन में,
बादल बनकर बरस गया कोई।
खोये- खोये से लम्हों को यादगार बना गया कोई।
कुछ अलग है बात उस शक्स में ,
पहली ही मुलाकात में मुझसे ,
इतना घुल-मिल गया कोई।
अजनबी शहर में अपना बना गया कोई।


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