कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ....
किंतु, वक्त की बेड़ियों में जकडा हुआ हूँ मैं ...
तोड़ नहीं पाया , प्रयास किए कई बार ...
निष्फल रहे मगर हर बार ...
कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ....
तन के बंधन से गहरे हैं , भावों के बंधन....
मन से मन हैं आज भी बंधे हुए....
यह और बात है जमाना हुआ उनसे मिले हुए॥
कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ....
मैं तोड़ता, तो तुम भी आ जाते तोड़ कर सारे बंधन॥
परन्तु यह सम्भव हो ना सका ,
दो सामानांतर रेखाओं की तरह ,
गुज़र रहा जीवन हमारा , कभी ना मिलने की लिए .......
कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ....
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