"शब्दों में जिनके कोई भाव नहीं हैं, जीने की उन्हें कोई आस नहीं है।
गुमनाम ही चले जाते हैं यह लोग, दुनिया में इनका होता कोई नाम नहीं है।
इनके लिए बस एक "रस्म" है , किसी से रिश्तों को निभाना ...
बनावटी मुस्कराहटों से मगर , हकीकत छुपती नहीं है।
शब्दों में जिनके कोई भाव नहीं हैं.......
महफिलों में भी अकेले रह जाते हैं यह लोग,
खुले दिल से कभी यह लोग किसी से मिलते नहीं हैं।
हाशियाँ बन कर रह जाते है यह लोग,
"किंतु-परन्तु" से जिंदगानियां चलती नहीं हैं।
शब्दों में जिनके कोई भाव नहीं हैं.......
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