Wednesday, September 29, 2010

कोई "तुमको" कुछ कहता है, दर्द मुझे क्यों होता है ?

मैंने माना , आज "रिश्ते" बहुत बदल गये हैं। मगर , कहीं ना कहीं आज भी "रिश्ते" अपनेपन का अहसास लिये हैं । कुछ "रिश्ते" बहुत "ख़ास" होते हैं... रजनीगंधा के फूलों की खुशबू की तरह महकते हैं। भले ही यह "रिश्ते" गुमनाम हैं मगर इन महकते हुये "रिश्तों" की कहानी कुछ अलग है। जो इस अहसास को महसूस करता है बस वही इन "रिश्तों" की अहमियत जानता है।

कोई "तुमको" कुछ कहता है,
दर्द मुझे क्यों होता है ?
अपनेपन का अहसास हो जहाँ ,
शायद ऐसा तब होता है।
इस अजनबी दुनिया में,
हर कोई नहीं अपना होता है।
सुख-दुःख मिलकर बाँटे जिनसे,
वो ही बस अपना होता है।
कोई "तुमको" कुछ कहता है,
दर्द मुझे क्यों होता है ?
खून के रिश्तों से गहरे हैं मन के बंधन ,
बंधा है इन बंधनों में जो
वो इंसान बड़ा खुशनसीब होता है।
ऐसा क्यों मेरे साथ हर बार होता है ?
समझता है जिसे दिल अपना ,
वही क्यों नजरों से दूर होता है।
कोई "तुमको" कुछ कहता है,
दर्द मुझे क्यों होता है ?
जरा सी बात पर छलक जाते हैं आंसू ,
दर्द मुझसे अब किसी का सहन नहीं होता है।
चोट लगे तुमको, रो देती हैं आँखें मेरी .......
यह अहसास भी ,
हर किसी को नहीं नसीब होता है।
कोई तुमको कुछ कहता है,
दर्द मुझे क्यों होता है ?

5 comments:

  1. ye hee apanapan hai ...........jo samvedansheelata kee sougat hai.......
    Acchee abhivykti .

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  2. मैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता.

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  3. @ Apanatva : जो मैं महसूस करता हूँ ... बस वही लिखा है.... आपका ह्रदय से आभार....

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  4. @ Sanjay Bhaskar : कविताओं पर आपकी "प्रतिक्रियाएँ मेरी पलकों को नम कर जाती हैं.... अपनेपन का सच्चा अहसास करा जाती हैं... आपने तो मुझे नि:शब्द कर दिया है संजय जी......

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  5. @ Sanjay Bhaskar : दो पंक्तियाँ आपकी कविता पर....
    http://www.sanjaybhaskar.blogspot.com/
    "फूलों का "दर्द" भी , अब कुछ कम हुआ होगा ,
    जब सहारा उन्हें, "आपके शब्दों का मिला होगा "

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