
चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
सांझ ढले से ही मुझको , बस उसका इंतज़ार था।
उससे मिलने की तमन्ना में, दिल बेकरार था।
आंसमा में चमक रहा, मानों आफताब था।
चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
छत पर बैठ कर , बतियाँ की ढेर सारी।
आखों ही आखों में गुज़र गयी रात सारी ।
मेरे चाँद का , जुदा सबसे अंदाज़ था।
चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
चंद लम्हों में ही, कई जन्मों का साथ था।
चांदनी में उसकी , अपनेपन का अहसास था।
बिछुड़ने के वक्त, आखों में बस मेरी ....
आंसुओं का ही "राज" था।
चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
फोटो - आभार गूगल
तभी तो इतनी खास कविता बन पाई।सुन्दर रचना के लिये बधाई।
ReplyDelete@ Nirmala ji : aapka Hradey se bhaut-bhaut aabhar....
ReplyDeleteमेरा भी यही कहना है -
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चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
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@ Ravi Ji: Sach kaha aapne.... bhaut khaas tha...vah chaand.... bhaut yaad ayega ab chand...
ReplyDeleteKya baat hai ...
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