कुछ दिनों से मैं ,
यह महसूस कर रह हूँ।
बच्चे आजकल , कुछ कम खेलते हैं।
बस मेरे आगे-पीछे ही घुमते हैं ।
मुझसे कुछ कहना चाहते हैं
।
"क्या जाना ज़रूरी है पापा ?"
शायद , यह पूछना चाहते हैं।
खुल कर तो कह पाते नहीं,
सब कुछ मगर,
अपनी आखों से कह जाते हैं ।
(फोटो आभार : गूगल )
अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
ReplyDeleteशायद यही पूछना चाहते हों!
ReplyDelete@ समीर जी (Udan Tashtari): शब्दों की इस अभिव्यक्ति में अब आप भी मेरे साथी बन गये हैं....
ReplyDeleteआप दूर देश में रहकर भी हम सब के दिल के बहुत करीब हैं..... आपका दिल से आभार....
@ संजय जी : आपने मेरी अभिव्यक्ति को अनुभव किया ... आपका ह्रदय से आभार....
ReplyDeleteShalabh Jee,
ReplyDeleteFir aapne badi "ATMIYA" kavita likhi hain , a portrayal of unspoken love ,trust & relation :)))
@ Sanjay Sharma ji : Aapne sab kah diya sanjay ji...
ReplyDeleteBas yahi shabd mere sathi hain mere safar me...
अपनी बात कहने का नया अंदाज..अच्छा लगा पढ़कर
ReplyDeleteयहां भी आइए
http://veenakesur.blogspot.com/
@ वीना जी : आप सब मेरा ब्लॉग परिवार हैं... आपके ब्लॉग पर भी ज़रूर आयेगें...और ज़रूर कुछ लिखूंगा...
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