I am Shalabh Gupta from India. Poem writing is my passion. I think, these poems are few pages of my autobiography. My poems are my best friends.
Sunday, December 5, 2010
"क्या इन्हें भी पता चल गया मेरे जाने का ...? "
आजकल,
चिड़ियाँ भी कम नज़र आने लगी हैं ,
मेरी छत की मुंडेर पर ।
क्या इन्हें भी पता चल गया मेरे जाने का ?
चिड़ियों, तुम चिंता मत करना ।
मैंने , बहुत सारे "अनाज के दाने "..
लाकर रख दिये हैं ,
मेरी छत पर बने एक कमरे में ।
घर में सबको कह दिया है,
और अच्छे से सबको समझा भी दिया है ।
मेरे दोनों बच्चे सुबह और शाम ,
छत की मुंडेर पर "दाना" रख दिया करेगें ।
सब कुछ तुम्हारा ही तो है ।
इन "दानों" पर हक़ तुम्हारा है ।
मैं कहीं भी रहूँ ,
तुम कभी चिंता मत करना ।
मेरी छत पर रोजाना ,
इसी तरह आते रहना ।
अपने हिस्से का "दाना",
तुम इसी तरह चुगते रहना ।
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हमारा होना और दाना भी चिडि़या ही तो है.
ReplyDelete@ Rahul ji : Sahi kaha aapne, Apna yahan kuch bhi nahin hain... Bas usi ka hai....
ReplyDeleteभावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDelete-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
@ ज्ञानचंद जी : आपने मेरी भावनाओं को अनुभव किया ... आपका ह्रदय से बहुत-बहुत आभार.....
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