Wednesday, December 1, 2010

"उस शहर में मेरे कुछ दोस्त भी रहते हैं ..."



ज़िन्दगी में बड़ों का आशीर्वाद ,
और सफ़र में घर का बना खाना ,
बहुत काम आता है ।
जब भी निकलता हूँ सफ़र के लिए,
आलू का परांठा और आम का अचार ,
बहुत याद आता है ।
तुम तो सब जानती हो माँ,
बस तुम्ही तो मुझे पहचानती हो माँ,
बेसन के लड्डू बहुत पसंद है मुझे,
इस बार का सफ़र कुछ लम्बा है,
हो सके तो थोड़ी सी मठरी भी बना देना।
इस बार लड्डुओं में ज़रा,
अपनी ममता की चाशनी और मिला देना।
मुझे पता है , आजकल तुम बीमार रहती हो...
घर का खाना भी ठीक से नहीं बना पाती हो।
चाहे लड्डू गोल से ना बने... मगर मैं खा लूँगा...
आपके हाथ से छूकर सारे के सारे लड्डू ,
अपने आप ही स्वादिष्ट हो जायेगें ।
बहुत दूर का है सफ़र,
रास्ते में मेरे बहुत काम आयेगें ।
और माँ , कुछ लड्डू और भी बना देना।
उस शहर में मेरे कुछ दोस्त भी रहते हैं ।
अपनी माँ से वह भी दूर रहते हैं ।
थोड़े उनके लिए भी ,
एक नये डिब्बे में रख देना ।
उनके घर जाकर खिला कर आऊँगा ।
सफ़र शुरू होने में ,
बस थोडा सा ही समय बाकी है ।
घर में सभी से ,
अभी बहुत कुछ कहना बाकी है ।
बच्चों को तो प्यार से समझा दूंगा,
बाकि जो कहना होगा,
चलते वक्त मेरी आखें कह देंगी ।

( शेष अगली कविता में....)

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