मकान, दूकान, चांदी, सोना,
कुछ नहीं है पास मेरे।
मैंने सहेज कर रखी हैं,
तुम्हारी यादें।
डायरी के कई खाली पन्ने,
और उन कोरे पन्नों में,
बुकमार्क की तरह,
रखे हैं मैंने,
चॉकलेट के खाली रैपर,
और कुछ सूखे हुए,
फूल गुलाब के।
यह फूल आज भी,
महक रहें हैं,
तुम्हारी यादों से।
मैंने सहेज कर रखी हैं,
कुछ लिखी हुई,
अधूरी प्रेम कवितायेँ।
कुछ अनकहे शब्द,
जिन्हें अब कहने,
और लिखने की,
ज़रूरत ही नहीं।
मैंने सहेज कर रखे हैं,
कुछ unseen messages,
कुछ sorry,
कुछ thank you,
यही है धरोहर,
मेरी ज़िन्दगी की।
और यही है,
बस वसीयत मेरी।
(सर्वाधिकार सुरक्षित : शलभ गुप्ता )
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