कभी कभी,
जीवन में,
एक लम्हा,
ऐसा भी आता है।
जब,
अपनों की आवाजें,
शोर लगती हैं।
और,
खामोशियों के,
सन्नाटे,
अच्छे लगते हैं।
कवितायेँ,
कहानियां,
लिखने वालों के,
शब्द भी,
मौन रहने लगते हैं।
अच्छा नहीं लगता है,
फिर किसी से,
बात करना।
शायद,
तुमसे भी नहीं।
बस खुद से ही,
होती हैं ढेरों बातें।
कभी अपने ही,
हाल पर ही,
मुस्कराते हैं।
ऊपर वाले ने,
हमें आँखें तो दीं,
मगर,
आसूं नहीं दिए।
और वैसे भी,
कहते हैं कि,
कवियों के शब्द,
उनके
आसूं ही तो होते हैं।
दिल के हाल,
फिर कागज़ पर,
बयां होते हैं।
लिखना है अभी,
बहुत कुछ।
मगर,
शेष फिर।
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