घने कोहरे का मौसम,
अभी तो आया नहीं है।
फिर यह आगे का रास्ता,
दिखाई देता क्यों नहीं है।
ऐसा मैंने कुछ कहा नहीं,
कुछ शब्दों के अर्थ होते नहीं।
कोई बात नहीं है फिर भी,
लबों पर हंसी क्यों नहीं है।
यह कैसी ख़ामोशी है,
साथ सब चल रहें हैं मगर,
भीड़ भरे रास्तों पर "शलभ",
एक दूसरे से बातें क्यों नहीं हैं।
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