
कल शाम समुन्दर से मुलाकात हो गयी,
अजनबी थे हम उसके लिए मगर
कुछ देर में जान पहचान हो गयी,
आखों ही आखों में दिल की बात हो गयी।
एक समुन्दर था मेरी नजरों के सामने,
एक समुन्दर मेरी आखों में था ।
वो भी छलक जाता था लहर बन के ,
आखें भी छलक जाती थी याद बन के ।
कल शाम समुन्दर से मुलाकात ही गयी ......
शांत था बहुत समुन्दर, बस शोर हवाओं का था ।
मेरे लौटने का इन्तजार , किसी को आज भी था ।
लहरों का दर्द हम खूब समझते हैं ,
हर लहर की किस्मत में किनारा नहीं होता ।
कल शाम समुन्दर से मुलाकात ही गयी ......
खामोश है समुन्दर, मगर भवंर बहुत हैं ।
एक छोटा सा दिल ही तो है हमारा ,
पत्थरों पर चोट से पत्थर भी टूटते बहुत हैं ।
घर लौटते पंछी , घर लौटता सूरज ...
किनारे से घर लौटते हुए हजारों कदम ......
इन कदमों में मगर, मेरे कदम नहीं थे ।
कल शाम समुन्दर से मुलाकात ही गयी ।
@ Sangeeta Ji : Thanks, I am in Mumbai nowadays...
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