Monday, July 26, 2021

आजकल (1)

नेता जी घर घर  जाने लगे हैं। 
शायद चुनाव आने लगे हैं। 
साँझ ढले जो छुप गया सूरज,
जुगनू कैसे टिमटिमाने लगे हैं। 
जरा सी बारिश क्या हुई गांव में,
पोखर के मेंढक टर्राने लगे हैं। 
मार देते हैं जहाँ बेटियां कोख में,
अब मीराबाई को बधाई देने लगे हैं। 
महामारी का असर है अब भी,
लोग कैसे बेपरवाह होने लगे हैं। 
बेटे जाकर बस गए विदेश में,
माँ - बाप जल्दी बूढ़े होने लगे हैं। 


Wednesday, July 21, 2021

"दास्ताँ यह लम्बी है बहुत.."

समुन्दर किनारे बैठकर, 
लहरों से बातें की बहुत।
सांझ ढले घर जाता सूरज,
लौटते पंछी याद आये बहुत।
सारी बातें दिल में ही रहीं, 
कहनी थी जो उनसे बहुत।
खुद से करते रहे हम बातें, 
कभी रोये कभी मुस्कराये बहुत।
कालेज के दिन, कैंटीन 
और "दोस्त" याद आये बहुत।
दिल के बागवां से, 
यादों के फूल समेट लाये बहुत।
आज भी आती है, 
उन फूलों से खुशबू बहुत।
तितलियाँ, फूल और यादें, 
मेरे जीने के लिए हैं बहुत।
और क्या कहें अब जाने दो, 
दास्ताँ यह लम्बी है बहुत।

"मेरी कहानियाँ,.."

कल रात समुन्दर बहुत रोया है शायद, 
दोपहर तक किनारे की सारी रेत भीगी हुई थी। 
वो पढने लगे है अब मेरी कहानियाँ, 
दिल के कागज़ पर अब तक जो लिखी हुई थी । 
सुलझने लगी है ज़िन्दगी की पहेलियाँ , 
बरसों से अब तक जो उलझी हुई थी । 
डायरी के पन्नों को लगे हैं हम पलटने, 
एक जमाने से अलमारी में जो रखी हुई थी ।

"इन्द्रधनुष.."

 ऐसा नहीं कि  बूंदों से मुझे प्यार नहीं है।
अब की बारिशों पर मुझे ऐतबार नहीं हैं।
आती हैं घटायें  किसी अजनबी की तरह।
पहले की तरह अब बरसती नहीं हैं।
बूंदों में  अपने पन का अहसास नहीं हैं।
पहले जैसे इन्द्रधनुष  अब बनते नहीं हैं।
ऐसा नहीं कि  बूंदों से मुझे प्यार नहीं है।
अब की बारिशों पर  मुझे ऐतबार नहीं हैं।
बदल गया है वक्त बदल गया ज़माना ,
खुले मन से अब "दोस्त" मिलते नहीं हैं ।
पहले जैसे इन्द्रधनुष अब बनते नहीं हैं ।

"कुछ पंक्तियाँ .."

[१]
ना बारिशें आयीं ना तुम। 
दोनों पक्के झूठे निकले। 

[२]
रिश्ते जितने कम होंगें। 
दर्द उतने कम होंगें। 

[३]
सीख लिया अब मैंने, दर्द को सहन करना। 
नमक के शहर में, ज़ख्मों को खुला रखना।  

[४]
यूँ तो आज भी, उनसे बातें होती हैं। 
मगर इन बातों में, अब वो बातें नहीं होती। 

"मेरी ज़िन्दगी आजकल.."

मेरी ज़िन्दगी आजकल,
बहुत हैरान कर देती है मुझे। 
दो कदम आगे चलता हूँ,
चार कदम पीछे कर देती है मुझे। 
यूँ तो मील के पत्थर भी जानते हैं,
और रास्ते के संकरे मोड़ भी मुझे। 
ना जाने क्यों दूर हो जाती हैं मंजिलें,
फिर शुरू से चलना पड़ता मुझे।  

"मन.."

भरी आखें और बादल,
जब तक बरसते नहीं।
चाहे कुछ भी कर लो,
मन हल्का होता नहीं। 

"तुम्हारी यादें,.."

तुम्हारी यादें,
धुँधली कभी हो ही नहीं सकती। 
मानो , अभी लौटा हूँ तुमसे मिलकर,
बीस साल पहले की तरह। 
समुन्दर किनारे संग तुम्हारे,
तपती रेत पर मीलों चला हूँ मैं। 
वक्त आज भी वहीँ ठहरा है। 
इसीलिए कुछ भूला ही नहीं मैं। 
बारिशों के बाद जैसे इंद्रधनुष ,
बिलकुल साफ़ दिखाई देता है। 
वैसे ही आज भी तुम्हारा चेहरा,
मेरी आखों के सामने रहता है। 
उम्र के साथ अब निगाहें ,
शायद धुँधली हो भी जाएँ,
मगर तुम्हारी यादें,
धुँधली कभी हो ही नहीं सकती। 

"मेरे घर के दरवाज़े पर.."

मसरूफ कर लिया अब खुद तो मैंने, 
विरासत में मिली घर की ज़िम्मेदारियों में।  
घर के सारे कोने भी, बहुत अपनापन रखते हैं। 
खुले रोशनदान, मुझसे अपनी कहानी कहते हैं। 
मेरे कमरे की दीवारें तो, मुझसे बहुत बतियाती हैं। 
थक जाता हूँ जब, मेरा सिरहाना बन जाती हैं। 
घर का मुख्य दरवाज़ा भी मेरी राह देखता है। 
जब तक घर न आऊं, बाहर देखता रहता है। 
आज भी मेरी तलाश में, उसके शहर की हवाएं,
मेरे घर के दरवाज़े पर, दस्तक देने आ जाती हैं। 
अब यहाँ कोई नहीं रहता, जब कहता हूँ मैं। 
पहचान लेती हैं आवाज़ मेरी, मगर लौट जाती हैं। 
(शेष फिर..)

"शिकायत .."

रात तू हमसे कुछ बात तो कर।
दिल की बातों का इज़हार तो कर। 
अभी बहुत देर है सुबह होने में,
ख्वाबों में आने का वादा तो कर। 
रात तू हमसे कुछ बात तो कर।
गुज़रते लम्हों का कुछ ख्याल तो कर। 
देर से आया था आज चाँद मेरी छत पर,
इसकी शिकायत तू आसमां से तो कर। 


Saturday, July 3, 2021

"बारिश बनकर आ जाओ.."

थोड़ी देर के लिए ही सही,
बारिश बनकर आ जाओ,
तुम मेरे आँगन में। 
बरस जाओ,
दिल के हर कोनों में। 
महक जाओ,
घर के सारे बंद कमरों में। 

"अपनों से मिलना बहुत मुश्किल हुआ है.."

पिछली गर्मियों में भी,  घर पर ही रहे। 
ना तो नाना - नानी के घर जा पाए। 
ना ही दादा - दादी से मिल पाए बच्चे। 
इस मई जून का भी, यही हाल हुआ है। 
इस महामारी के कठिन समय में,
अपनों से मिलना बहुत मुश्किल हुआ है। 

"भरम हैं पल भर के.."

पहला प्यार - आखरी प्यार,
अब तो बस भरम  हैं पल भर के। 
ज़रा ज़रा सी बातों में आजकल,
लोग रख देते हैं ब्लॉक कर के। 

"इंतज़ार अभी बाकी है.."

दिन तो बात गया,
पर शाम अभी बाकी है। 
तेरी राह निहारते नैनो में,
इंतज़ार अभी बाकी है। 
मेरी पथराई आँखों में,
कुछ आंसू अभी बाकी हैं। 
तुम ना आये आ आओगे,
पर उम्मीद अभी बाकी है। 


"कुछ दर्द ..."

कुछ दर्द सहना भी,
ज़रूरी है ज़िन्दगी में। 
हर लम्हा ख़ुशी मिले,
यह ज़रूरी तो नहीं। 

"मुझे इश्क़ है तुमसे..."

यूँ तो,
बहुत कुछ तुमसे,
कहना था मुझे। 
मगर,
आज भी नहीं कह पाया। 
मुझे इश्क़ है तुमसे,
बस कविता में ही लिख पाया। 
और वो कविता भी आज तक,
तुमको सुना नहीं पाया। 

"वो लम्हा जी कर देखना है.."

तुम्हें छूकर देखना है। 
वो लम्हा जी कर देखना है। 
उस लम्हें में सारा जीवन,
कई बार जी कर देखना है। 

"कुछ पंक्तियाँ ...."

[१]
धीरे धीरे मेरे दिल से, अब बहुत दूर हो गए हैं। 
शहर के अपने कुछ लोग, अब अजनबी हो गए हैं। 
[२]
कुछ लम्हों को यादगार करके देखते हैं। 
चलो आज, हम भी मुस्करा देखते हैं। 
[३]
पुरानी  बातों को, भूलाकर देखते हैं। 
चलो आज फिर मुस्कराकर देखते हैं।