समुन्दर किनारे बैठकर,
लहरों से बातें की बहुत।
सांझ ढले घर जाता सूरज,लौटते पंछी याद आये बहुत।
सारी बातें दिल में ही रहीं,
सारी बातें दिल में ही रहीं,
कहनी थी जो उनसे बहुत।
खुद से करते रहे हम बातें,
खुद से करते रहे हम बातें,
कभी रोये कभी मुस्कराये बहुत।
कालेज के दिन, कैंटीन
कालेज के दिन, कैंटीन
और "दोस्त" याद आये बहुत।
दिल के बागवां से,
दिल के बागवां से,
यादों के फूल समेट लाये बहुत।
आज भी आती है,
उन फूलों से खुशबू बहुत।
तितलियाँ, फूल और यादें,
तितलियाँ, फूल और यादें,
मेरे जीने के लिए हैं बहुत।
और क्या कहें अब जाने दो,
दास्ताँ यह लम्बी है बहुत।
जाने देते हैं , लेकिन दोस्त तो हमेशा याद आते हैं ।
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