ना बारिशें आयीं ना तुम।
दोनों पक्के झूठे निकले।
[२]
रिश्ते जितने कम होंगें।
दर्द उतने कम होंगें।
[३]
सीख लिया अब मैंने, दर्द को सहन करना।
नमक के शहर में, ज़ख्मों को खुला रखना।
[४]
यूँ तो आज भी, उनसे बातें होती हैं।
मगर इन बातों में, अब वो बातें नहीं होती।
No comments:
Post a Comment