कभी कभी उसका स्कूल से देर से लौटना ....
मुझे परेशान कर देता है।
ऑफिस के काम में नहीं लगता फिर मन मेरा,
स्कूल के फ़ोन मिलाने लगता हूँ।
सड़क पर आकर फिर बस की राह देखता हूँ।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
अपने वजन से ज्यादा भारी बैग अपने ,
नाजुक कन्धों पर लेकर जब वो बस से उतरता है ।
लपक कर वह बैग मैं , अपने हाथों में ले लेता हूँ।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
पानी की खाली बोतल , और भरा हुआ लंच बॉक्स
भी थमा देता है वो मेरे हाथों में।
फिर ऊँगली पकड़कर मेरी साथ-साथ बढता है ।
नन्हे-नन्हे पैरों से बड़े-बड़े कदम चलता है ।
खुश होता है वह कि मैं उसका साथ हूँ।
उससे ज्यादा खुशी मुझे होती है , कि वह मेरे साथ है।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
यूँ तो अपना होम-वर्क ख़ुद कर लेता है मगर,
"Math" में जरुरत मेरी महसूस करता है।
तब ऑफिस की बड़ी-बड़ी "calculations" को छोड़कर,
"3" और "2" को "sum" करना अच्छा लगता है ।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
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