कुछ स्वप्न अंकुरित हुए थे .....
मन की वसुंधरा में,
जब पहली बार देखा था तुम्हें।
प्रणय की धूप , विश्वास की माटी
और आस्था के जल के समन्वय से
गुलाब की पंखुडियों से भी ज्यादा
नाजुक मेरे वो स्वप्न
क्षण-क्षण पल्लवित होकर
आज वट-वृक्ष बन गये हैं।
हम-तुम जो मिल गये हैं।
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