Monday, April 6, 2009

कल शाम बातों-बातों में ज़िक्र पहले प्यार ..........



कल शाम बातों-बातों में ज़िक्र पहले प्यार का आ गया।
लबों पर नाम बस तुम्हारा आ गया।
नैनों से बरसनें लगे तुम याद बन कर,
बिछुड़ने का वो लम्हा फिर याद आ गया।
तुम्हारी तो तुम ही जानो, अपना तो बुरा हाल हो गया।
कल शाम बातों-बातों में ज़िक्र पहले प्यार का आ गया।
फिर किसी काम में नहीं लगा मन मेरा,
शाम तो कट गई जैसे तैसे, रात भर का मगर फिर जागना हो गया।
बोझिल पलकों में उलझ कर रह गई फिर नीदें मेरी,
बार-बार निगाहों में चेहरा फिर तुम्हारा आ गया।
कल शाम बातों-बातों में ज़िक्र पहले प्यार का आ गया।
डायरी के पन्नों को पलटते रहे रात भर,
दिसम्बर में लिखा वो तुम्हारा आखरी ख़त फिर याद आ गया।
कल शाम बातों-बातों में ज़िक्र पहले प्यार का आ गया।

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