आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती ....
बारिशों के मौसम में भी अब कविता नहीं बनती ।
कोई उनसे कह दे जाकर , मैं उनका हो नहीं सकता
मेरी हथेलियों में अब मिलन की लकीरें नहीं बनती।
आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती ....
ख़ुद ही रचा था मैंने , अपनी तबाही का मंजर ।
आंसुओं से भरी आँखें , गवाह बनी थी मेरी ।
दिल पर पत्थर रख कर जब , तुमको रुखसत किया था मैंने।
क्यों निगाहें आज फिर , तुम्हारा इंतज़ार हैं करतीं ?
आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती ....
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