Thursday, November 18, 2010

"सिर्फ़ तुम पर, बस तुम पर ही लिखी हैं ....."



सिर्फ़ तुम पर, बस तुम पर ही लिखी हैं .....
सारी कवितायें मैंने ,
एक दिन सब तुमको ही सुनानी हैं।
कुछ कवितायें अधूरी रहीं,
कुछ कवितायें लिख ना सके।
कुछ कवितायें तुम सुन ना सके,
कुछ कवितायें हम सुना ना सके।
वक्त गुजर गया कुछ कवितायें कहने का,
कुछ कवितायें तुमको सुनाने का ,
अभी वक्त आया ही नहीं।
सिर्फ़ तुम पर, बस तुम पर ही लिखी हैं .....
सारी कवितायें मैंने ,
एक दिन सब तुमको ही सुनानी हैं।
कई कवितायें ,
अभी तुम पर लिखनी बाकी हैं।
कई अधूरी कवितायें
अभी पूरी करनी बाकी हैं।
हो जायेंगी एक दिन सब कवितायें पूरी ,
जीवन अनंत है आस है पूरी ।
इन्तजार लंबा है मगर, अनेकों जीवनकाल हैं।
तब तक, एक सर्वश्रेष्ठ कविता भी बन जायेगी।
सिर्फ़ तुम पर, बस तुम पर ही लिखी हैं .....
सारी कवितायें मैंने ,
एक दिन सब तुमको ही सुनानी हैं।

3 comments:

  1. प्रिय Shalabh Gupta जी
    नमस्कार !
    बहुत समय बाद आपके यहां पहुंचा हूं , पुरानी कई पोस्ट्स भी पढ़ी हैं अभी । निरंतर अच्छे सृजन-प्रयासों के लिए साधुवाद !
    … प्रस्तुत कविता भी बहुत भावनात्मक संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है …


    आप स्वस्थ , सुखी हों , हार्दिक शुभकामनाएं हैं …
    संजय भास्कर

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  2. किसकी बात करें-आपकी प्रस्‍तुति की या आपकी रचनाओं की। सब ही तो आनन्‍ददायक हैं।

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  3. @ संजय भास्कर जी : मैं कुछ भी नहीं...संजय जी, मेरे शब्द भी कुछ नहीं...
    जीवन में किसी के प्रति भावनात्मक अनुभूति ही , मन में कुछ ऐसा लिखने की प्रेरणा दे जाती है... आपका दिल से आभार...

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