Monday, November 8, 2010

"मुझे याद है तुम्हारा पहला ख़त, जो तुमने मुझको लिखा था ..."




मुझे याद है तुम्हारा पहला ख़त,
जो
तुमने मुझको लिखा था
मुझे याद है तुम्हारा दूसरा ख़त,
जो
तुमने मुझको लिखा था।
इस तरह पाँच ख़त तुमने मुझको लिखे थे
सारे खतों में एक प्यारा सा अहसास था ,
सारे ख़त थे कोरे कागज ,
लिफाफे
पर बस मेरा नाम था
फिर छठे ख़त में तीन शब्द लिख पाये तुम
"क्या चाकलेट खाओगे" मेरे साथ तुम
वो पहली चाकलेट जो हमने आधी-आधी खायी थी
वो चाकलेट पचास पैसे की आयी थी
अपनी गुल्लक से जो तुम लाई थी
उस चाकलेट का रैपर मैंने रख लिया था
कई ख़त मैंने भी तुमको लिखे,
पर
सारे ख़त मेरे पास ही रहे
और वो आखरी ख़त ,
जो
तुमने मुझको लिखा था
इस बार कोरा कागज नहीं था वह ,
जीवन का उसमें था सार लिखा,
प्रेम
का सारा हाल लिखा।
ना मिल पायेगें हम,
यह
बार-बार लिखा

6 comments:

  1. judai bhi to pyar hai. sunder rachna. aabhar.

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  2. मेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
    http://samajik2010.blogspot.com/2010/11/blog-post.html

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  3. ओह ...बहुत अच्छी प्रेम की अभिव्यक्ति

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  4. @ Sangeeta ji : Aapka Hradey se abhaar....

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  5. मैं "गूगल" का दिल से आभार व्यक्त करता हूँ....

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