मेरे शब्द, आपके शब्दों से बातें करने को तरसते हैं।
क्योंकि, हम बस सिर्फ़ आप पर ही लिखते हैं।
आपके शब्दों को अधिकार है, ख़फा होने का मगर
ज़रा सी बात की क्यों , इतनी सज़ा देते हैं।
हमे एहसास है अपनी गुस्ताखी का ,
आप तो दुश्मनों को भी माफ़ कर देते हैं।
नाराज़गी का कोई और रास्ता इख्तियार कीजीये
मेरे शब्दों पर ना इतने बंधन लगाईये ,
शब्दों को आज ज़रा दिल खोल कर मिलने दीजीये।
मेरे शब्दों पर ना इतने बंधन लगाईये ,
शब्दों को आज ज़रा दिल खोल कर मिलने दीजीये।
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