Wednesday, May 27, 2009

"कुछ कर गुजरने के लिए, मौसम नहीं बस मन चाहियें"



कुछ वर्ष पूर्व , अपने शहर में मुझे डा0 विष्णु कान्त शास्त्री जी के ओजस्वी विचारों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था आज जब वो हमारे बीच नहीं हैं पर उनकी यह पंक्तियाँ मुझे हर पल याद रहती हैं।

"हारे नहीं जब हौसले , कम हुए तब फासले।

दूरी कहीं कोई नहीं, केवल समर्पण चाहियें।

कुछ कर गुजरने के लिए, मौसम नहीं बस मन चाहियें।"

शलभ गुप्ता

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