Saturday, May 30, 2009

"शलभ" का तो काम है, फ़ना हो जाना मिट जाना......



जो ख्वाब पूरे हो नहीं सकते,
वो ख्वाब , आप मुझे दिखातें क्यों हैं ?
मुझे तो आदत है खंडहरों में रहने की,
मेरे लिए नया आशियाना आप बनाते क्यों हैं ?
हो गई है आदत अब तन्हाईयों की मुझे,
अपनी महफिल में , आप मुझे बुलाते क्यों हैं ?
जो ख्वाब पूरे हो नहीं सकते,
वो ख्वाब , आप मुझे दिखातें क्यों हैं ?
मंजिल पर जाकर ही रुकना था मुझको मगर,
ज़िन्दगी में मेरी , इतने मोड़ आते ही क्यों हैं ?
"शलभ" का तो काम है, फ़ना हो जाना मिट जाना ।
चंद साँसे बाकी हैं मेरी , आप मुझे अब बचाते क्यों हैं ?
जो ख्वाब पूरे हो नहीं सकते,
वो ख्वाब , आप मुझे दिखातें क्यों हैं ?

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