Tuesday, May 12, 2009

श्री सिद्धि विनायक जी के दर्शन ( 11 May 2009, 11:40 A.M.)

श्री गणेशाय नमः

कल सुबह वह यादगार पल आ ही गया, जिसका मुझे बेसब्री से इंतज़ार था। श्री सिद्धि विनायक जी का आर्शीवाद मुझे प्राप्त हुआ और मेरी सिद्धि विनायक जी के दर्शनों की मनोकामना पूरी हुई।

यदि हमे अपने उद्देश्य और सही गंतव्य का पता होता है तब कदमों को अपने आप गति मिल जाती है। और कदम ख़ुद ही उस मंजिल की ओर चलने लगते हैं। अगर हमे अपने गंतव्य का पता नहीं है तब या तो हमारे कदम रुक- रुक कर चलेगे , कहीं ठहर जायेंगे या फिर मार्ग से भटक जायेंगे। कहते है सबसे तेज़ गति मन की होती है। कई बार मन की तेज़ गति हमें परेशान भी करती है। इसीलिए मेरा मानना है कि किसी कार्य में हमको सफलता तब ही मिलेगी जब हमारी मन ओर कदमों की गति एक समान है।

शलभ गुप्ता

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