Saturday, March 21, 2009

अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ......



अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ......
तन तो भीगा खूब मगर, मन रहा प्यासा मेरा पहले की तरह।
पेड़ों पर लगे सावन के झूलों को खाली ही झुलाते रहे,
उन बारिशों से इन बारिशों तक इंतज़ार हम करते रहे।
वो ना आए इस बार भी मगर पहले की तरह ।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ......
वो साथ नहीं हैं यूँ तो , कोई गम नहीं है मुझको ।
मुस्कराहटें "राज" की नहीं हैं अब मगर पहले की तरह।
यूँ तो कई फूल चमन में, खिल रहे हैं आज भी मगर ।
खुशबू किसी में नहीं है, जो दिल में बस जाए पहले की तरह।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ......

No comments:

Post a Comment