जिस्म छोड़ रहा हूँ , थोडी जान अभी बाकी है ।
वोह शायद मना लेंगें मुझको , थोडी आस अभी बाकी है ।
सुबह का सूरज कब निकलेगा ,
बीत रही है रात , मगर थोडी अभी बाकी है ।
रात भर शायद , बहुत रोई है रात
दोपहर तक फूलों पर , ओस अभी बाकी है ।
जिस्म छोड़ रहा हूँ , थोडी जान अभी बाकी है ।
वोह शायद मना लेंगें मुझको , थोडी आस अभी बाकी है ।
अपने हैं तो , मार कर भी छाँव में ही डालेंगे ।
मेरे दोस्तों में , इतनी इंसानियत अभी बाकी है ।
अपनों का ज़हर है , ज़रा देर से असर करेगा
जान जायेगी बहुत , देर तड़पने के बाद
मेरे ग्लास में , कई घूँट ज़हर अभी बाकी है ।
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