
I am Shalabh Gupta from India. Poem writing is my passion. I think, these poems are few pages of my autobiography. My poems are my best friends.
Monday, December 28, 2009
"यदि आँखों में किसी की, कोई नमी नहीं हैं।"

Wednesday, December 23, 2009
"उसके लिए हद से भी गुज़र जाऊं मैं..."

किसी काम आ जाऊं मैं ।
किसी काम आ जाऊं मैं ।
Tuesday, December 15, 2009
"माँ, एक बार फिर से मुझको लोरी सुनाकर, सुला जाना"

लोरी सुनाकर , सुला जाना ।
जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ।
लोरी सुनाकर , सुला जाना ।
जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ।
Sunday, December 13, 2009
"हर साँस मेरी , एक ऐसी कहानी लिख रही ..."

जीवन वृतान्त कह रही।
Saturday, December 12, 2009
"तितलियों को उड़ने दिया करो ...."

Thursday, December 10, 2009
"दिल पर हर बार, एक जख्म नया देखा..."

Tuesday, December 8, 2009
Saturday, December 5, 2009
"स्रष्टि का नियम यही है........"

Thursday, December 3, 2009
"आने वाले कल के लिए, नई इबारत लिख रहा .."
तेज़ी से गुज़र रहा।
आने वाले कल के लिए,
नई इबारत लिख रहा।
इस भागती - दौड़ती दुनिया में ,
हर इंसान अपना मुकाम तलाश रहा ।
"राह" का पत्थर था जो अब तलक,
अब "मील" का पत्थर बन रहा ।
Wednesday, December 2, 2009
"ह्रदय में कुछ स्वप्न नये बुनता हूँ ...."
आपको सादर नमन करता हूँ।
आपकी "प्रतिक्रियाओं" के संग्रह के सन्दर्भ में ,
अपने मन के कुछ उदगार व्यक्त करता हूँ।
ह्रदय में कुछ स्वप्न नये बुनता हूँ।
एक-एक करके बड़ी लगन से ,
आपके विचारों की महकती बगिया से ,
गुलाब की पंखुड़ियों से अधिक नाजुक ,
मेरी भावनाओं से अधिक भावुक,
आपके प्रेरणादायी शब्दों के फूल चुनता हूँ।
उन महकते हुए फूलों से फिर मैं ,
अपनी कविताओं का श्रंगार करता हूँ।
ह्रदय में कुछ स्वप्न नये बुनता हूँ।
मेरे जीवन के लिए मार्गदर्शक बनीं,
आपके द्वारा व्यक्त की गयीं ,
"संजीवन अभिव्यक्तियों" के प्रति,
प्रत्येक पल मैं आपका,
कोटि-कोटि आभार व्यक्त करता हूँ।
ह्रदय में कुछ स्वप्न नये बुनता हूँ।
Monday, November 30, 2009
"मंजिल चाहे कितनी भी दूर सही .... "
क़दमों पर अपने , बस भरोसा होना चाहिए।
ठहरे हुए पानी में क्या मज़ा आएगा,
तैरने के लिए , समुन्दर में तूफान चाहिए।
चलते रहना है निरंतर , ना रुकना है कभी ..
भीड़ से अलग, पद-चिन्ह अपने बनाना चाहिए।
Wednesday, November 18, 2009
"तन तो है मिटटी का ......."
चाहे कोई भी ले ले ।
मन तो जिसका होना था ,
अब तो हो गया ।
बना दिया मीरा मुझे,
और मन "घनश्याम" हो गया।
कुछ नहीं रहा अब पास मेरे,
जिसको ले जाना था,
वो सब ले गया।
बना दिया मीरा मुझे,
और मन "घनश्याम" हो गया।
Sunday, November 15, 2009
"आप माने या ना माने , मगर सच कहता हूँ मैं ..."
मिलने से ज़्यादा आपसे , बिछुड़ने के पल पाता हूँ मैं।
आप माने या ना माने , मगर सच कहता हूँ मैं।
वक्त ने दूर कर दिया , मुझको आपसे मगर......
हमेशा आपको अपने ही करीब पाता हूँ मैं।
आप माने या ना माने , मगर सच कहता हूँ मैं।
अब कोई नहीं आवाज़ देगा और बुलाएगा मुझको,
फिर भी हर आहट पर चौंक जाता हूँ मैं ।
आप माने या ना माने , मगर सच कहता हूँ मैं।
Friday, November 13, 2009
"हमें हर हाल में मुस्कराना है ....."
दर्द तो बस छुपाना है।
हमें हर हाल में मुस्कराना है ।
वक्त , हर समय नहीं रहता एक सा....
हर मौसम आना - जाना है।
हमें हर हाल में मुस्कराना है ।
निराश होने से कुछ नहीं हासिल,
जो सह गया काटों की चुभन को,
"गुलशन" उसका हो जाना है।
हमें हर हाल में मुस्कराना है ।"
Monday, November 9, 2009
"कुछ दूर तलक साथ चलो, भूल कर शिकवे-गिले।"
Saturday, November 7, 2009
"शब्दों में जिनके कोई भाव नहीं हैं......."
गुमनाम ही चले जाते हैं यह लोग, दुनिया में इनका होता कोई नाम नहीं है।
इनके लिए बस एक "रस्म" है , किसी से रिश्तों को निभाना ...
बनावटी मुस्कराहटों से मगर , हकीकत छुपती नहीं है।
शब्दों में जिनके कोई भाव नहीं हैं.......
महफिलों में भी अकेले रह जाते हैं यह लोग,
खुले दिल से कभी यह लोग किसी से मिलते नहीं हैं।
हाशियाँ बन कर रह जाते है यह लोग,
"किंतु-परन्तु" से जिंदगानियां चलती नहीं हैं।
शब्दों में जिनके कोई भाव नहीं हैं.......
Friday, November 6, 2009
"दिल से दिल को जोड़ना चाहता हूँ मैं ...."
समुन्दर में रास्ता बनाना चाहता हूँ मैं ।
किनारे पर लहरों से बातें की बहुत दिन,
अब तूफानों से टकराना चाहता हूँ मैं।
दिल से दिल को जोड़ना चाहता हूँ मैं ......
छुप-छुप कर देख लिया अब बहुत दिन,
अब उन्हें छू कर देखना चाहता हूँ मैं।
यूँ तो रोज़ मेरे ख्वाबों में आते हैं वो ....
अब उनके ख्वाबों में आना चाहता हूँ मैं।
दिल से दिल को जोड़ना चाहता हूँ मैं .......
छोटी सी उम्र में दुश्मन बना लिए बहुत,
अब एक दोस्त बनाना चाहता हूँ मैं।
कवितायें तो बहुत लिखी हैं मैंने,
अब एक दास्ताँ लिखना चाहता हूँ मैं।
दिल से दिल को जोड़ना चाहता हूँ मैं ......
Monday, November 2, 2009
"कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ...."
किंतु, वक्त की बेड़ियों में जकडा हुआ हूँ मैं ...
तोड़ नहीं पाया , प्रयास किए कई बार ...
निष्फल रहे मगर हर बार ...
कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ....
तन के बंधन से गहरे हैं , भावों के बंधन....
मन से मन हैं आज भी बंधे हुए....
यह और बात है जमाना हुआ उनसे मिले हुए॥
कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ....
मैं तोड़ता, तो तुम भी आ जाते तोड़ कर सारे बंधन॥
परन्तु यह सम्भव हो ना सका ,
दो सामानांतर रेखाओं की तरह ,
गुज़र रहा जीवन हमारा , कभी ना मिलने की लिए .......
कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ....
Friday, October 30, 2009
"अगर, आज तुम ना आए तो....."

Tuesday, October 27, 2009
"मंजिल की तलाश में......"
अनवरत चल रहे कदम मेरे ,
तुम्हें देखकर ठहरने से लगे हैं।
बीत गई है काली रात ग़मों की ,
आशाओं के पंछी चहकने से लगे हैं।
मंजिल की तलाश में,
अनवरत चल रहे कदम मेरे ,
तुम्हें देखकर ठहरने से लगे हैं।
बरसों से रैक में रखी, धूल की परत ज़मीं
Diary के पन्नों को एक बार
फिर से हम पलटने लगे हैं।
कई बरस पहले diary में रखे,
गुलाब के फूल आज एक बार
फिर से महकने लगे हैं।
मंजिल की तलाश में,
अनवरत चल रहे कदम मेरे,
तुम्हें देखकर ठहरने से लगे हैं।
Friday, October 23, 2009
"ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?"

Sunday, September 27, 2009
"रिश्तों का अहसास कहाँ हो पाता है ...."
Thursday, September 10, 2009
"बरगद की तरह, उन्मुक्त होकर बढना है मुझे..."

Sunday, August 30, 2009
"थोड़ा - थोड़ा है प्यार अभी, और ज़रा बढने दो ..."

नई-नई है दोस्ती अभी , और ज़रा बढने दो।
नई-नई है दोस्ती अभी , और ज़रा बढने दो।
नई-नई है दोस्ती अभी , और ज़रा बढने दो।
Thursday, August 27, 2009
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं....
सारी खुशियाँ मिले आपको, यह दुआ है मेरे भाई ।
सफलताओं की रोशनी से जगमग रहे आपका जीवन।
खुशी और सफलताओं के आप बने प्रतीक, नाम सार्थक हो आपका।
जब चले बात सफल लोगों की , दुनिया नाम ले बस आपका।
जन्म दिन है आज आपका , स्वीकार करो बधाई।
सारी खुशियाँ मिले आपको, यह दुआ है मेरे भाई ।
मिले आपको आपके मन का मीत, जीवन बने संगीत।
शुभकामनाएं हैं हमारी, हर सपना पूरा हो आपका।
तमाम उम्र फूलों से महकता रहे आपका जीवन,
"राज" की है दुआ, जीवन चंदन हो आपका।
जन्म दिन है आज आपका , स्वीकार करो बधाई।
सारी खुशियाँ मिले आपको, यह दुआ है मेरे भाई ।
Tuesday, August 25, 2009
"ऐ दिल, ना परेशान कर मुझे"
बातों-बातों में हमने उससे कह दिया।
ऐ दिल, ना परेशान कर मुझे,
और धडकना छोड़ दे।
दिल बोला बड़े इत्मीनान से ,
छोड़ दूंगा मैं उस दिन धडकना ,
"राज", प्यार करना तू जिस दिन छोड़ दे।
Saturday, August 22, 2009
क्या कसूर मेरा ?

Wednesday, August 12, 2009
"अपने चित्रों में रंग भर के तो देखो..."

आपकी ज़िन्दगी में भी रंग आ जायेंगे ।
आपकी ज़िन्दगी में भी रंग आ जायेंगे ।
आपकी ज़िन्दगी में भी रंग आ जायेंगे ।
आपकी ज़िन्दगी में भी रंग आ जायेंगे ।
Friday, August 7, 2009
"आप मुझे यूँ ही उदास रहने दीजिए"

Friday, July 24, 2009
"मेरा अनुग्रह तुम्हें स्वीकार करना ही होगा"

मेरे घर के आंगन में,
"तुलसी" का पौधा बनना ही होगा।
Saturday, July 18, 2009
"लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है....."

Friday, July 17, 2009
"कृष्ण हैं आप मेरे, मुझे सुदामा बना लेना "

एक दीपक आपके नाम, स्वीकार लेना।
Wednesday, July 15, 2009
"बिजलियाँ तो अक्सर गिरा करती हैं मुझ पर"
Thursday, July 9, 2009
"जीवन मेरा संवार दो माँ "

Thursday, July 2, 2009
"नया अध्याय शुरू हुआ है आपके साथ...."

जब तक मैं आपसे जुडा नहीं था।
जब तक में आपसे जुडा नहीं था।
Wednesday, June 24, 2009
"प्यार" एक खूबसूरत अहसास है......

आंखों से देख कर दिल में समाने वाला ,
एक खूबसूरत सा एहसास है।
खुशनसीब हैं वो लोग , जिनके पास यह एहसास है।
इश्क अँधा नहीं , इश्क “खामोश” है ,
बिना कुछ कहे बहुत कुछ समझने का एहसास है।
खुशनसीब है वो लोग , जिनके साथ यह एहसास है।
इश्क अँधा नहीं , इश्क “इंतज़ार” है ,
किसी नज़र को, आज भी किसी का इंतज़ार है।
खुशनसीब है वो लोग ,
जो आज भी करते किसी का इंतज़ार है।
इश्क अँधा नहीं , इश्क एक “कसम” है,
खुशनसीब हैं वो लोग, जिनके लिए
किसी की आँखें आज भी नम हैं ।
इश्क , “राज” के सपनों में आने वाली
एक खूबसूरत परी की ,
प्यारी सी एक "प्रेम कहानी" है।
खुशनसीब हैं , वो लोग जिनको
आज भी याद वो कहानी जुबानी है।
Monday, June 22, 2009
"मेरे सिरहाने आकर बैठ गए, तुम्हारी यादों के साये"

Sunday, June 21, 2009
"हम , अपनी किताब लिखने से रह गये"

Saturday, June 20, 2009
"अपने अस्तित्व को ही अपनी पहचान बनाना है"
यह जीवन एक बार मिलता है, इस जीवन को सार्थक बनाना हमारा कर्तव्य है। हर व्यक्ति के पास 24 घंटे होते हैं, यह उसके विवेक पर निर्भर करता है कि वह इन 24 घंटे का प्रयोग किस प्रकार से करे।
हमारा अस्तित्व , हमारे लिए मूल्यवान है, हमारे कर्म ही हमारी पहचान हैं। जीवन पथ पर चलना है निरंतर , जीवन में सही उद्देश्य को पाना ही, जीवन की सार्थकता का परिणाम है।
लंबा जीवन जीने से अधिक महत्वपूर्ण है कि हमने जीवन को किस प्रकार से जिया है । क्या हमने अपने जीवन में कुछ ऐसा किया है जो सबसे अलग हो, सबसे नया हो। हमने अपने जीवन को सफल बनाने के लिए कोई सार्थक प्रयास किया है या नहीं।
हमें अपनी सजीवता को प्रर्दशित करना है। माध्यम "सघन" हो या "विरल", बस सकारात्मक सोच के साथ अविरल धारा की तरह आगे चलते जाना है। बहता हुआ "जल" बनना है , ठहरा हुआ "पानी" नहीं।
अपने अस्तित्व को ही अपनी पहचान बनाना है। जीवन में सफल होकर दिखाना है।
Friday, June 19, 2009
"अपने शहर की तेज़ धूप में भी, ठंडक सी लगती है"
[1] परदेस की चांदनी में, अब तो तपन सी लगती है।
अपने शहर की तेज़ धूप में भी, ठंडक सी लगती है।
[२] बोझिल पलकें कह रहीं हैं , उनकी कहानी सारी।
आखों ही आखों में गुजारी हैं, रातों की नीदें सारी।
Friday, June 12, 2009
"यह "अहसास" ही, बस मेरे साथ होता है"

Wednesday, June 10, 2009
"एक बार फिर क्या तुम आओगी ?"

"अब इस शहर को छोड़ कर जाने का मन है"

आखों में हैं यादों के मोती, भारी बहुत मन है।
आखों में हैं यादों के मोती, भारी बहुत मन है।
Thursday, June 4, 2009
"कब बन गई एक नई कहानी, पता ही ना चला"

Tuesday, June 2, 2009
"अब की बारिशों पर , मुझे ऐतबार नहीं हैं..."

अब की बारिशों पर , मुझे ऐतबार नहीं हैं।
"बारिशों के मौसम अब आने वाले हैं....."
Saturday, May 30, 2009
"शलभ" का तो काम है, फ़ना हो जाना मिट जाना......
वो ख्वाब , आप मुझे दिखातें क्यों हैं ?
वो ख्वाब , आप मुझे दिखातें क्यों हैं ?
"राज सारे दिल के खोल रहा कंगना ..."

बस तभी से ढूँढ रहे हैं दिल हम अपना।
"हम भारतीयों के जिस्म पर ही बार-बार आतंकवाद और नस्लवाद के घाव क्यों"

Wednesday, May 27, 2009
"कुछ कर गुजरने के लिए, मौसम नहीं बस मन चाहियें"
कुछ वर्ष पूर्व , अपने शहर में मुझे डा0 विष्णु कान्त शास्त्री जी के ओजस्वी विचारों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था आज जब वो हमारे बीच नहीं हैं पर उनकी यह पंक्तियाँ मुझे हर पल याद रहती हैं।
"हारे नहीं जब हौसले , कम हुए तब फासले।
दूरी कहीं कोई नहीं, केवल समर्पण चाहियें।
कुछ कर गुजरने के लिए, मौसम नहीं बस मन चाहियें।"
शलभ गुप्ता
Tuesday, May 26, 2009
"किसी के मीत कब छूटे नहीं हैं ...."
Monday, May 25, 2009
"जब से चला हूँ , मंजिल पर नज़र है......"
"जब से चला हूँ , मंजिल पर नज़र है।
मैंने कभी मील का पत्थर नहीं देखा।"
चलते-चलते बशीर बद्र जी का एक शेर याद आ गया है , वह भी आपको सुनाता चलूँ....
हवा से पूछना दहलीज़ पर ये कौन जलता है। "
"इसी अहसास के साथ हमे ज़िन्दगी को जीना है.."
Thursday, May 21, 2009
"मेरे शब्द, आपके शब्दों से बातें करने को तरसते हैं..."

मेरे शब्दों पर ना इतने बंधन लगाईये ,
शब्दों को आज ज़रा दिल खोल कर मिलने दीजीये।
Wednesday, May 20, 2009
" चक्रव्यहू में तो जाना ही होगा......"
यह बात तब और भी जरूरी हो जाती है जब हम अकेलें रहतें हों। सारे decisions ख़ुद ही लेने हों। फिर परिणाम चाहे कुछ भी हो।
Abhimannu भी चक्रव्यहू से निकलने का रास्ता नहीं जानते थे, लेकिन वह फिर भी परिणाम की चिंता किए बिना चक्रव्यहू में गए थे।
किनारे पर बैठ कर तो हम तैरना नहीं सीख सकते हैं, लहरों का सामना तो करना ही होगा। डूब जाने के डर से तो हम कभी तैरना नहीं सीख पायेंगें ।
अगर ज़िन्दगी को सही अर्थों में जीना है तब, इतना risk तो लेना ही होगा। चक्रव्यहू में तो जाना ही होगा।
बस, हौसला नहीं खोना है। हिम्मत नहीं हारनी है। लगातार प्रयास करते रहना है। फिर देखना , एक दिन सफलता जरूर हमारे साथ होगी।
शलभ गुप्ता
Tuesday, May 19, 2009
"सर्वश्रेष्ठ आना अभी बाकी है । "
Monday, May 18, 2009
"तेज रफ़्तार और बिना मंजिल का सफर कभी पूरा नहीं होता है"

मेरे मित्र मुझसे कहते हैं कि तुम Bike तेज क्यों नहीं चलाते हो ? इस पर मैं उनसे कहता हूँ, कि जब Bike तेज चलाने की उम्र थी तब मेरे पास bike नहीं थी और अब जब bike है तो तेज चलाने की उम्र नहीं है।
जीवन में कुछ जिम्मेदारियों का अहसास हमारी गति को control में रखता है। यह जिम्मेदारियां ही हैं जो हमें सही अर्थो में जीना सिखाती हैं। जब हम किसी काम के प्रति जिम्मेदार होंगें, तब ही उस काम को सही दिशा देने में सफल होंगे।
यह शब्दों की यात्राएँ हमेशा चलती रहें..........
Shalabh Gupta
Thursday, May 14, 2009
किसी के आंसुओं में डूबी हुई खुशी मुझे नहीं चाहिए .....
शायद सब ठीक कहते हैं, जो जैसा है वैसा ही रहेगा । बस जुड़ते रहिये और मिलते रहिये। लेकिन लोग ऐसे क्यों होते हैं ? यह बात एक शहर की नहीं है हर जगह ऐसा ही हो रहा है।
आज लोग इंसानों को एक वस्तु की तरह use करते हैं। फिर उसका misuse करते हैं। अरे भाई , हम भी एक इंसान है। कहते हैं कि दिल और दिमाग की दौड़ में, जीत दिमाग की होती है। नही चाहिए मुझे यह जीत।
किसी के आंसुओं में डूबी हुई खुशी मुझे नहीं चाहिए।
आज सब सिकंदर बनना कहते हैं, पुरु बनना क्यों नहीं ? शायद मेरे पास भगवान् ने सिकंदर जैसा दिमाग नहीं दिया। हम सब क्या हासिल करना चाहते हैं ?
आज हम सब चाँद तक पहुँच गए है , पर क्या किसी के दिल तक पहुँच पाये हैं ? शायद नहीं।
नहीं चाहिए मुझे ऐसा दिमाग जो हमें लोगों के दिलों से दूर कर दे। मेरा तो यह मानना है कि किसी को यदि मेरे आसुओं में खुशी मिलती है तो वो ही सही , आख़िर हम किसी को खुशी तो दे रहे हैं।
अपनी एक कविता की चार पंक्तियों के माध्यम से अपनी बात आपके सामने रखना चाहता हूँ।
"हर किसी को अपना समझ लेते है,
इस तरह फिर दिल को सज़ा देते हैं ,
गलती यह हम बार-बार करते हैं ,
आँखें रोंती हैं , फिर उम्र भर
लब मगर हमेशा मेरे मुस्कराते हैं। "
और यह सोचना अगर ग़लत है तो यह गलती हम बार - बार करना चाहेंगें ।
आने वाला कल , एक नई इबारत लिखकर रहेगा .....
Wednesday, May 13, 2009
इस शहर के लोग मुझे, प्यार बहुत करते हैं ......
Tuesday, May 12, 2009
श्री सिद्धि विनायक जी के दर्शन ( 11 May 2009, 11:40 A.M.)
श्री गणेशाय नमः
कल सुबह वह यादगार पल आ ही गया, जिसका मुझे बेसब्री से इंतज़ार था। श्री सिद्धि विनायक जी का आर्शीवाद मुझे प्राप्त हुआ और मेरी सिद्धि विनायक जी के दर्शनों की मनोकामना पूरी हुई।
यदि हमे अपने उद्देश्य और सही गंतव्य का पता होता है तब कदमों को अपने आप गति मिल जाती है। और कदम ख़ुद ही उस मंजिल की ओर चलने लगते हैं। अगर हमे अपने गंतव्य का पता नहीं है तब या तो हमारे कदम रुक- रुक कर चलेगे , कहीं ठहर जायेंगे या फिर मार्ग से भटक जायेंगे। कहते है सबसे तेज़ गति मन की होती है। कई बार मन की तेज़ गति हमें परेशान भी करती है। इसीलिए मेरा मानना है कि किसी कार्य में हमको सफलता तब ही मिलेगी जब हमारी मन ओर कदमों की गति एक समान है।
शलभ गुप्ता
Saturday, May 9, 2009
Wednesday, May 6, 2009
मुल्कराज आनंद जी की एक कहानी ( Happy Mother's Day - 10 May 2009)
एक बच्चा अपनी माँ की उंगली पकड़कर मेले में जाता है। वहां सुंदर गुब्बारे , लाल-हरी ज़री की टोपियाँ , वर्फी- जलेबी मिठाई की दुकानें देखकर बच्चा एक के बाद एक चीज मागंता है।
माँ के पास पैसे नहीं थे। इसलिए वह बच्चे को कुछ नहीं दिला पाती है। बच्चे को गुस्सा आता है, उसे अपनी माँ बुरी लगने लगती है। भीड़ में माँ की उंगली छूट जाती है।
बच्चा खो जाता है। मारे डर के जब वह रोने लगता है तब गुब्बारेवाला, टोपीवाला, मिठाईवाला उसे अपनी-अपनी चीजें देकर शांत करने की कोशिश करते हैं। बच्चा हर चीज लेने से इनकार कर देता है। उसे सिर्फ़ अपनी माँ चाहियें।
आपका ही ,
शलभ गुप्ता
Saturday, May 2, 2009
सिद्धि विनायक मन्दिर , मुंबई
सिद्धि विनायक जी के दर्शनों की अभिलाषा के साथ,
Tuesday, April 28, 2009
मेरी शिर्डी यात्रा ( २६ अप्रैल २००९)

रविवार को बाबा के दर्शनों का सपना साकार हुआ, मन्दिर के वातावरण में मुझे एक नई उर्जा का अनुभव हुआ। मन्दिर के पवित्र प्रांगन में बैठकर बहुत देर तक मैंने बाबा से बात की। बाबा बड़ी खामोशी से सब सुनते रहे और मुस्कराते रहे।
वहां , मैंने यह महसूस किया कि हर व्यक्ति बाबा से ही बातें कर रहा था। जिसे जो बाबा से मांगना था , मांग रहा था। सब लोग, मन्दिर से बड़ी प्रसन्नता और संतुष्ट भावः से बाहर आ रहे थे। मानों , बाबा सबके प्रश्नों का उत्तर दे रहे हों और सबकी झोली भर रहे हों। सबके चेहरों पर मैंने सच्ची खुशी का अनुभव किया। लाखों भक्तों की भीड़ थी, परन्तु वहां एकदम शान्ति का वातावरण था।
सचमुच, वहां के वातावरण में एक अलोकिक शक्ति है , जो हमें जीवन में सदा अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देती है।
शायद, मुझे भी मेरे प्रश्नों का उत्तर मिल गया था। मैं भी, संतुष्ट भावः से मन्दिर से बाहर आने लगा था।
ॐ साईं राम ..... ॐ साईं राम .....ॐ साईं राम......
ॐ साईं राम ......ॐ साईं राम..... ॐ साईं राम......